बालस्वभाव और विद्यालय

बालक घीसा का बालमन कभी चंचल हो जाता था। एक बार तो घीसा ने अपनी दादी से जिद्द करली कि वह स्कूल नहीं जाएगा। काफी मानमनोव्वल के बाद भी घीसा नहीं माना। दादी ने काफी समझाया। पिता लादूराम ने उन्हें डांटा-डपटा। इसी वक्त गांव की बामण दादी गई। बामण दादी ने प्रेम से शिक्षा की उपयोगिता बताई और स्कूलजाने हेतु लडाया। तब कहीं जाकर घीसा स्कूल जाने को तैयार हुआ।
वाहिदपुरा और सीगड़ी के बीच में दो जोहड़ पड़ते थे, उनमें गहरे फोग-झाड़ियां थी और उनमें सियार लोमड़ियों का स्थाई निवास था। बालक घीसा का मन शिक्षा से ऐसा जुड़ा कि वह बाल-स्वाभावगत भय से भयभीत हुए बिना निर्धारित समय पर गुरुवर के पास पहुंच जाता।
स्कूल में घीसा के पास एक स्लेट थी; जिसे वर्षों तक चलाने का लक्ष्य पिता ने बालमन में स्थापित कर दिया था।


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