अमरता की ओर

राजस्थान का कोई भी छात्रावास शायद ही होगा जहां तक घासीराम का लाखों का सहयोग नहीं पहुंचा हो। खासकर कन्या शिक्षा की अलख जगाने वाले इस धूने के बाबा की दान साधना अप्रतिम है। अब तक वे देश भर के छात्रावासों, स्वयं सेवी संस्थाओं आदि के माध्यम से अपनी कड़ी मेहनत के कमाए हुए चार करोड़ से ज्यादा रूपये दान कर चुके हैं। वे जहां भी गए उदारता से लाखों लुटाए।

झुंझुनूं, नवलगढ़, सीकर, डीडवाना, नागौर, तारानगर, भादरा, साहवा, टोंक, फतेहपुर, अजमेर, किशनगढ़, जसवंतगढ़, मालपुरा, चित्तौड़गढ़, कपासन, गुलाबपुरा, कोटा, रतनगढ़, सूरतगढ़ आदि न जाने कितने छात्रावास डॉ. वर्मा की दानशीलता के मूक गवाह बने हुए हैं।

सांगलिया, टोंक, महाराजा सूरजमल भौक्षणिक संस्थान-दिल्ली, मुकुन्दगढ़, मंडावा, गोठड़ा, अलीपुर, भारू, नबीपुरा, सीगड़ा, जाखोद, लक्ष्मीपुरा-टोंक, संगरिया, बगड़, चिड़ावा, खेतड़ी, पिपराली, अलीपुर, चूरू, जमवारामगढ़, बिसाऊ आदि की अनेक शैक्षणिक व स्वयंसेवी संस्थाएं वर्मा की दानवीरता की आदाता रही हैं। अनेक साहित्यकार और साहित्यिक प्रकाशनों को भी वर्मा की साहित्यिक रूचि का लाभ मिला।

नेक नीयत को डॉ. वर्मा बड़ी तीक्ष्णता से ताड़ जाते हैं और फिर मुक्त हस्त से सहयोग करते हैं। डॉ. घासीराम वर्मा अपने इस सहयोग व विद्वता के बूते पर जीते जी अमर हो चुके हैं।

आज भी डॉ. घासीराम वर्मा अमेरिका से प्रतिवर्ष चार माह भारत नियमित आते हैं और जितना कुछ लाते हैं; सब श्रेष्ठ कार्यों में आहुत कर जाते हैं। धन्य हैं ऐसी दानवीरता।