बी.ए. फाइनल की परीक्षा के दौरान घासीराम और उनका मित्र रामेश्वर जांगिड़ साथ-साथ अमेरिका भ्रमण के सपने लेने लगे। मगर मुसीबत यह थी कि रामेश्वर कई वर्षों से बी.ए. की परीक्षा दे रहा था परंतु उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था। परीक्षा में मित्र की मदद करने की घासीराम ने सोची और अपनी गणित की उत्तर पुस्तिका में रामेश्वर के नंबर लिखे और रामेश्वर से अपने नंबर लिखवाये। रामेश्वर उत्तीर्ण हो गया। मगर घासीराम मित्रता का मोल चुकाने के वशीभूत होने के कारण प्रथम श्रेणी से वंचित हो गए।