सपूत के पैर पालने ...

घासीराम लगनशील दृढ़ निश्चय का धनी रहा। विद्यालय में मनीरामजी जो कुछ याद करने देते वे सब हू--हू याद कर डालता। उन दिनों गणित का जोर होता था। गिनती, पहाड़े, जोड़, बाकी, गुणा, भाग सब बड़े जोर-शोर से सिखलाये जाते थे। घासीराम बड़ी तन्मयता से उनको सिखता और उत्साह से गुरुवर को सुनाता। गुरुजी भी उनकी लग्न देख प्रभावित होते।
तीसरी कक्षा में आते ही घासीराम गुरुजी के आदेश से सब सहपाठियों की स्लेट पर लिखे की जांच करने लगे।सहपाठी चुन्नीलाल, रामसिंह, रामनारायण, तारासिंह (हेतमसर) सब घासीराम की होशियारी की प्रशंसा करते थकते थे।
सही कहा है कि सपूत के पैर पालने में ही पहचाने जा सकते
हैं।

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