वही पुरानी नौकरी

घासीराम एम.ए. कर चुका था लेकिन बेराजगार।
करे तो क्या करे।
गांव में रहकर क्या करे ?
झुंझुनूं के विद्याधर कुलहरि ने घासीराम को अपने लड़के को पढ़ाने का काम दे दिया। घासीराम को प्रसन्नता हुई। झुंझुनूं में रहने की ठौर मिल गई। घासीराम वहां रहकर अखबारों में रिक्त पदों को ढूंढ़ने लगे। आवेदनों का दौर चला। आखिरकार बगड़ की उसी पुरानी स्कूल में पद खाली होने का समाचार मिला। घासीराम पुन: उसी राह पर चल पड़े। श्री अब्रोल साहब ने १०० रूपये तनख्वाह और २० रूपये महंगाई भत्ते कुल १२० रूपये में घासीराम को रख लिया। मगर घासीराम का मन कचोटने लगा। बनारस से एम.ए. करने का क्या लाभ?