एक और उड़ान की तैयारी में

एक दिन घासीराम पिलानी गए। वहां प्रोफेसर दूलसिंह से मिले। प्रोफेसर साहब ने गणित के नए रिसर्च प्रोफेसर आने का समाचार बताया व रिसर्च करने को प्रेरित किया। रिसर्च प्रोफेसर के पास पहुंचे। उन्होंने हामी भरली मगर डर फिर उसी आर्थिक संकट का। घासीराम रिसर्च प्रोफेसर डॉ. विभूतिभूशण सेन की सलाह से प्रिसिंपल नीलकांतन से प्रार्थना ले मिले। प्रिसिंपल साहब ने ७५ रूपये मासिक छात्रवृत्ति की स्वीकृति जता दी। घासीराम को राहत मिली।

बगड़ आकर अब्रोल साहब को अपनी योजना बताई और वहां से दायित्व मुक्त हो शोध कार्य का लक्ष्य ले खुशी साथ पिलानी पहुंचे। मगर संकट घासीराम का कहां पीछा छोड़ने वाले था। प्रिसिंपल नीलकांतन ने बताया कि श्री जी. डी. बिड़ला जी ने अचानक ग्रांट कम कर दी इसी वजह से तुम्हें २५ रूपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति मिलेगी।
घासीराम हतप्रभ रह गए।
न घर के रहे न घाट के।
नौकरी भी गई और शोध की दिशा में भी २५ रूपये से काम नहीं चल सकता।